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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मनुष्यो!!! मननी प्रतीत न करशो. राग आशावरी. मननी प्रतीति न करशो, मनुष्यो मननी प्रतीत न करशो.॥ मन जीत्यु मन मरी गयु बहु, एवी अहंना न धरशो; मायु कहेतां पाछु जागे, मन विश्वासे मरशो. मनुष्यो०१ राग रोष प्रगटे ज्यांसुधी, त्यांसुधी नहीं ठरशो मन छे नर्क स्वर्ग भव बाजी, मन कहे तेम न करशो. मनुष्यो० २ ज्ञानी योगी तपसी संतो, !!! चेतीने संचरशो; हुँ तुं स्फुरणा' मोहे प्रगटे, मनसंगे भव फरशो. मनुष्यो०३ ममता अहंता कामविकारो, जोइ जोइ संहरशो; दुशानी योगी हुँ तपसी, हुं हुं मन परिहरशो. मन शयताननी अकळकळा छे, पलपल उपयोग धरशो; दुर्गुण हरशो सद्गुण वरशो, नहींतो दुःखे मरशो. मनुष्यो० ५ क्षयोपशम उपशम गुण पामी, अहंवृत्ति न धरशो; बुद्धिसागर आतमभावे, उपयोगी थै ठरशो. मनुष्यो०६ मनुष्यो०४ आतम!!! मोहने मारी नाखो, आशावरी, आतम ! मोहने मारी नाखो, मोहथकी नहीं सुखने शांति; प्राणांते सत्य भाखो....................................आतम. कंचनकामिनीमोह त्यजीने, आतमसुखने चाखो; मनवच कायथी हिंसा त्यागो, आतममा मन राखो. आतम. १ परधन पुगल सर्व गणीने, त्यागो ममता बळापो बुद्धिसागरशुद्धोपयोगे, जपवो अजपाजापो. - For Private And Personal Use Only
SR No.008545
Book TitleBhajanpad Sangraha Part 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year
Total Pages198
LanguageGujarati, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati & Worship
File Size9 MB
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