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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नयोनी. १ नयोनी. ३ सर्वधर्मदर्शनविषेरे, अरस्परस मतभेद विरुद्धाचारविचारनीरे, दृष्टिना टळे खेद. दर्शन धर्मना भेदथीरे, युद्धादिक जे थाय; वैर अहंतादिक टळेरे, मध्यस्थे सत्य जणाय. नयसापेक्षनी दृष्टिथीरे, मध्यस्थ समता थाय; सर्वातम एकातमारे, भावदशा प्रगटाय. प्रभुमहावीरे जणावियुरे, सर्वनयोनुं ज्ञान; बुद्धिसागर आतमारे, शुद्ध श्यो गुण नाण. नयोनी. ४ सामगटाय. नयोनी. ५ आतम!!! आप स्वभावमें रमना. ___ सोरठ. आतम आपस्वभावमें रमना, मनकी मायामें दुःख छाया; त्यागी दे सब भ्रमणा............ ......................आतम. पुण्यपापफलमुखदुःख प्रगटे, समभावे वह खमना; मनमें काम कषायो प्रगटे, उसकुं ज्ञाने दमना. आतम.१ कबही अमीरी कबहु फकीरी, राजा रंक है भ्रमणा; उच्च नीच अरु सारा खोटा, सब है मनका सपना. आतम. २ आतममें आनंदरस भोजन, आतमज्ञानसें जिमना; आतमका उपयोगे रहना, नाशे जन्म रु मरणा. आतम.३ सत्ताए प्रभु तुं है आतम, लेत हे क्या मनशरणा; तेरारूप समरले साहिब, तारक है तुज तरणा. आतम. ४ उपयोगे निज आतमशुद्धि, करना है प्रतिक्रमणा; बुद्धिसागर समरस प्रगटे, होवत ज्योति उझमणा. आतम. ५ For Private And Personal Use Only
SR No.008545
Book TitleBhajanpad Sangraha Part 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year
Total Pages198
LanguageGujarati, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati & Worship
File Size9 MB
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