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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ५६ नागाथी कमनी दुनिया, झट आधी भागी; खुलो आकाशवत् आतमा, शुद्ध चेतना जागी. माह्यरुं ताह्यरुं नहि रहूं, शुद्ध आनंद उल्लसे; नव नत्र ज्ञेयनी वर्तना, ज्ञानयोगे विलसे. परापश्यंती वारनी, दशा नागी जणाई; बुद्धिसागर आतमा, ज्योति ज्योत सुहाइ. ---- Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अवधूत नाम न रूप हमेरा. राम सोरठ, . अवधूत० नामरूपकी वासना बूरी, प्रगटे राग रु वैरा; नामरूपका मोह पलाया, हर्ष न शोकका चहेरा. मिथ्या नामकुं रूपकुं दुनिया, निंदो स्तवो लख फेरा; उसमें हमकुं शोक न प्रीति, गगनगढे दिया देरा. ज्ञानानन्दकी मस्त फकीरी, जहां नहि मेरा तेरा; बुद्धिसागरशुद्धतम प्रभु, अनंत नूर अकेला. गुणानुरागी थाशोरे. राग गोडी. माया, ५ अवधूत नाम न रूप हमेरा, आतमज्ञानसें आतम जाग्यो; मिट गया अंधेरा.... For Private And Personal Use Only माया. ६ माया. ७ अब० १ अव० २ अव० ३ गुणानुरागी थाशोरे, ज्यां त्यांथी ग्रहो सत्य. गुणानुरागी. दुर्गुण दोष न देखवारे, कर्मलगी ते होय; सद्गुण ज्यां त्यां देखवारे, दोष त्यां अचरिज व्होय. गुणा० १ सद्गुणरागथी प्रगटतीरे, सम्यग्दृष्टि बेश; सम्यग्दृष्टि बलथकीरे, नासे रागने द्वेष. गुणानुरागी, २
SR No.008545
Book TitleBhajanpad Sangraha Part 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year
Total Pages198
LanguageGujarati, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati & Worship
File Size9 MB
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