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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४८ आत्मा . सोरठ. आपोआपहि गाया, निरंजन आपोआपहि ध्याया; देहे न देही छुपाया........................निरंजन आतमकुं कहो मातपिता अरु, आतमकुं कहो भ्राता; आतम पुत्र कलत्र रु दादा, आतम दासने त्राता. निरंजन० १ आतम मातपिता नहि नारी, पुत्र न मित्र न भ्राता; सबरूप है और सबरूप नाहि, दास नहीं ओर त्राता. निरंजन० २ आपहि कर्ता आप अकर्ता, आप न ध्याता अध्याता; आप हि कर्म अकर्म अगोचर, आप हि दाता अदाता. निरंजन०३ आपहि अस्ति आपहि नास्ति, सदसद्रूप कहाया; आपहि साधन साध्य रू सिद्धि, साधन भिन्न सुहाया. निरंजन०४ ज्ञानज्ञेय और आपहि ज्ञानी, गुणी निर्गुणी लखाया; बुद्धिसागर अलख अरूपी, आपोआपकुं पाया. निरंजन०५ अवधूत !!! नाम न रूप हमारा. सोरठ. अवधूत नाम न रूप हमारा, चिदानंद घन प्रभु परब्रह्म सबमें है सब न्यारा................................अवधूत. नहि हम हिंदु जैन मुसल्मीन, स्वीस्ति न वर्ण अढारा; जात भात नहि लिंग न वेषी, नहि आचार विचारा. अवधूत० १ नहि हम धर्मी नाहि अधर्मी, कर्म न करणी क्यारा; कुछ नाहि लेना कुछ नहि देना, दान नहि दातारा. अवधूत० २ वणे गंध रस स्पर्श नहि हम, जडका नहि आकारा; पृथ्वी जल आकाश न अनि, चंद सूरज नहि तारा. अवधूत०३ For Private And Personal Use Only
SR No.008545
Book TitleBhajanpad Sangraha Part 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year
Total Pages198
LanguageGujarati, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati & Worship
File Size9 MB
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