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मनुष्यो !!! मानवभव नहीं हारो.
राग आशावरी. मनुष्यो !!! मानव भव नहीं हारो, निज आतमने सुधारो. मनुष्यो. क्षण क्षण दिल्मा प्रभुने संभारो, ममता अहंता वारो; धन सत्ता अभिमान निवारो, दिल्मां दया सत्य धारो. मनुष्यो. १ राग रोष अरि प्रगट्या संहारो, त्यागो दुष्ट विचारो; आत्म सरीखा सहु जीव भाळो, मन प्रगट्यो मोह मारो. मनुष्यो. २ शत्रु उपर शममीत धारो, प्रभुपां मनडु वाळो; गुणीपणानी अहंता टाळो, टाळो दुष्टाचारो. मनुष्यो. ३ तन धन यौवन गर्वने गाळो, कामनी वृत्ति विदारो; दान दया दम तप जप पूजा, धर्मनां साधन सारो. मनुष्यो. ४ सद्गुण धारो जन्म सुधारो, प्रभु मळशे निर्धारो बुद्धिसागर आतम तारो, समजीने नहीं हारो. मनुष्यो. ५
आतम !!! आप स्वरूप संभारो.
राग सोरठ. आतम आप स्वरूप संभारो, चिदानंद तुज धर्म खरो छे, निज उपयोगे धारो. आतम० जड क्रियाने जड तो करे छे, आतम उपयोग किरिया; आत्म स्वभावे आत्मधर्म छ, समजी ज्ञानी तरिया. आतम. १ हरिहर ब्रह्मा देव देवी सहु, आतमना छे दासा; प्रकृतिबलथी नहि प्रभुता, धर एवा विश्वासा. आतम. २ आनंदनो दरियो तुं सदा छे, तुं प्यारो तुं प्यारो; हुँ तुं ते ज्यां भेद नहीं त्यां, प्रगटे छे निर्धारो. आतम. ३
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