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२२ गांजो पीवे ते गांडो ने बांडो, भांग चडस दुःखकार; होको चलम बीडी अफीण छंडो, दुःखनां ते दातार. छडो. ३ अकरांतिया थै खूब न खावू, खावो सात्त्विक आहार; सट्टा जुगारथी सुख नहीं शांति, चोरीथी क्लेश अपार.छंडो.४ दुर्व्यसनीनो संग करो नहीं, दुष्ट धरो ना आचार; दुष्टजनोनी पासे रहेतां, प्रगटे दुष्टाचार. छंडो. ५ हिंसा जूटुं चोरी जारी, कषाय पाप अपार; पाप करंतां मनने वारो, धर्म करो सुखकार. छंडो.६ दुर्व्यसनोने दुर्गुण त्यागो, धर्मी बनो नरनार; बुद्धिसागर सद्गुरु संगत, करतां सुख अपार. इंडो.७
आत्मशुद्धिथी मुक्ति. राम जपो रहिमान जपो पण, दिलशुद्धि वण नहि मुक्ति. ताप तपो वनवास रहो पण, समता वण नहि कदि मुक्ति. १ जटा वधारे मुक्ति मळे तो, वडनी पण थावे मुक्ति केशने लुंचे मस्तक मुंडे, मुक्ति नहीं समजो सूक्ति. तीरथ जल स्नाने नहीं मुक्ति, अज्ञानीने चतुर्गति आतम ज्ञानथी क्षणमां मुक्ति, जो होवे मनमां नीति. ३ करे क्रिया पण न्याय न नीति, ज्ञानविना किरिया जूठी; भावविना भक्ति नहि फळती, ज्ञानविना पूजा झूठी. शुष्कज्ञानथी मळे न मुक्ति, वाद विवादो बहु प्रगटे मोह मर्यावण कोनी न मुक्ति, मन मरतां माया विघटे. ५ आतमज्ञानी निरभिमानी, समभावी पामे मुक्ति बुद्धिसागर अनंत आनंद, पामे जीवंत मुक्ति थती.. ६
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