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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सुखदुःखे धारे समभाव, ज्ञानानन्दनो लेसा लहावे; विश्वमनुष्यो एवा थाय, कायदाबंधनमुक्त सुहाय. आत्मिक स्वतंत्रता प्रगटाय, भव्य प्रजा मुज पदने पाय; मारामां मां नहीं भेद, वर्ते ज्ञानानन्द अभेद. स्वाधिकारे प्राप्त जे कर्म करवामां नहि होय अधर्म; उत्सर्गे अपवादे जाण, स्वाधिकारे कर्म प्रमाण. जाणे एवं प्रजा समाज, वर्ते त्यां आत्मिकसाम्राज्य; दोष अल्पने धर्म महान, पूर्णशुद्धियी छे निर्वाण. कर्मातीतपणाने पाय, आयुःप्रांते सिद्ध सुहाय केइक भव्यो स्वर्गे जाय, केइक मानवभवने पाय. पुण्ये शांति तुष्टि थाय, द्रव्य भावथी पुष्टि पाय; पापना पन्थो टळता जाय, मुज भक्तो मुज सरखा था, क्षेत्रने काळादिक अनुसार, प्रजासंघना सहु व्यवहार; जाणीवतें नरनेनार, पामे परमानंद निर्धार. जैनधर्म एवो मुज जाण, प्रजासंघकर्तव्य प्रमाण; सापेक्षाए धर्मने जाण, निज अधिकारे वर्त !! सुजाण. श्रेणिक !!! तुजने प्रजासमाज-, कर्तव्ये समजाव्युं राज्य; त्यागीनुं आतममां राज्य, भूपोना पण ते महाराज, तुं त्हारा अधिकारे चाल !!! शुद्धातमनुं धारो व्हाल; भव्यप्रजाकर्तव्य जणाव, आर्यपणाना लेवा लहाव. श्रेणिकने दीघो उपदेश, प्रजा भूग्ने हर्ष विशेषः प्रभुने प्रेमे लागे पाय, क्षण क्षण प्रभु समरी सुख पाय. For Private And Personal Use Only ९९ १०० १.१ १०२ १०३ १०४ १०५ १०६ १०७ १०८ १०९
SR No.008545
Book TitleBhajanpad Sangraha Part 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year
Total Pages198
LanguageGujarati, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati & Worship
File Size9 MB
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