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सर्वपर्ण ने त्यागी ज्याय, आतमज्ञानी प्रगटे त्याय, , प पजामां आनंद ल्हेर, धाय न काळाकर्मनो केर. नामरूपनो मोह न ज्यांय, प्रभुसमा सहु लोको त्यांय; भातमज्ञाननुं शिक्षण पाय, सात्विकभव्यप्रजा प्रगटाय. मातम ज्ञानविना अंधेर, प्रजासूपराज्योमा झर; आतमज्ञानी लोको ज्याय, सुखीजीवन वर्ते त्यांय. हिंसा चोरी युद्ध न क्याय, प्रजासंघमां शांति त्यांय; दुष्टव्यसननो नहीं प्रचार, मजा न कोथी पामे हार. राजाज्ञाए प्रजापति, प्रजाभूपमां धर्मनी नीति एकात्मासम वर्ते दोय, भक्ति ज्ञान प्रगट त्यां जोय.
सायवृत्ति शीघ्र शमाय, दोषो टाळवा सख्त उपाय: .. एकांगी एवी ज्यां प्रजा य, स्वर्गीयप्रगति प्रगटाय. भूप प्रजामा ऐक्यनो भाव, दुष्टोनो चाले नहीं दाव; प्रबलशत्रुओ हारी जाय, रविथी तम वेगे विणशाय. धीओपर आवे धाड, तोपण नासे ते तत्काल; दया सत्यने आतमभाव, प्रगटे सारा बने बनाव. मुजमां मन राखी नरनार, चढती पामंतां निर्धार; कर्मबंध नहीं पामे भव्य, अधिकारे करतां कर्तव्य. शुदातम उपयोगी होय, नभवत् निर्लेपी ते जोय; 'कालने जीति थाय अकाल, जैनो पामे मैगलमाल; पुरस्य स्वागी ब्रमस्वरूप-, जाणी थावे ब्रह्मस्वरूप पारग्ये व्यवहार ज वाय, जीवन्मुक्तदशाने पाय. एक बीजाने ठगे न लोक, पाड़े नहीं पापोनी पोक; एकबीज़ाना साराहेत, जीवनना वर्ते संकेत.
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