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कर्म करे पण होय अकर्म, अखंड उपयोगे छ शर्म; अहंममत्वनी वृत्ति टळे, प्रजासंघ मुजज्योते मळे. दर्शनशानचरणनो योग, भोग छतां नहीं वर्ते भोग; विषयोमाही नहि मुंझाय, प्रजासंघ, प्रभुरूप सुहाय. चारप्रकारे संघ अखंड, वर्ते मोहनु टाळे बंड; मुज आज्ञाए शुदि पाय, आपोआप प्रभु थै जाय: स्वाधिकारे हिंसा त्याग, स्वाधिकारे घट वैराग्य; स्वाधिकारे धारे रहेम, स्वाधिकारे योगने नेस. सर्वजीवोपर वर्ते रहेम, प्रजा मुकर्मी पामे क्षेम; आतमसम जीवोपर दृष्टि, प्रजा एहवी स्वर्गनी सृष्टि. व्यक्ति समष्टिनुं स्वातंत्र्य, तेना साचा सर्वे मंत्र; . आचारो प्रगटे ज्यां बेश, प्रना एहवी लहे न क्लेश. वर्णधर्ममेदे नहि क्लेश, धर्ममेदथी युद्ध न लेश; धर्मविभेदे टळे न संप, प्रजा लहे ते चढती जप. एक बीजाने प्रेमे चहे, शत्रुना अपराधो सहे; .. एकात्मासम येने रहे, प्रजा एहवी मुजने लहे. देशभेदयी घरे न भेद, चामडीरंगे धरे न खेद; धर्मनी श्रद्धा धारे बेश, टाळे कुसंप कजिया क्लेश. आत्मस्वरूपे देखे सर्व-, जीवोने नहि धारे गर्व मूख्यांने खवरावी खाय, तरश्यांओने पाणी पाय. निराश्रितनी ले संभाळ, क्रोध करे नहि दे नहि गाळ; रोगीओने औषधदान, संतोनुं धारे सन्मान. सत्ताधनहुँ नहि अभिमान, आतमज्ञानी निरभिमान; प्रेमाल नरनारीवर्ग, मनमां प्रगदावे के स्वर्ग.
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