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आजीविकासाधनो, स्वाधिकारे जेह; धारे धर्मार्थे सकळ, प्रजा ज जीवे तेह. ज्ञानने सेवा भक्तिथी, प्रजोन्नति वर्ताय; नास्तिकमूढमजा कदि, सात्विक शक्ति न पाय.
चोपाइ. जैनधर्म आराधन करे, यथाशक्तिथी प्रगति वरे; आतमशुद्धि माटे धर्म-कर्म- धारे दिलमां मर्म. सर्वकलाशिक्षण- ज्ञान, पामे धर्मिप्रजा गुणवान ; मुज आज्ञाए धारे धर्म, टाळे मोहनी आदि कर्म. दुष्टोथी नहि पामे हार, बळकळधर्म धरी आचार; वर्ते सर्व प्रकारे दक्ष, आतमशुद्धि धारे लक्ष. वर्ते मातमना उपयोग, भोगविषे अंतर्मा योग, आसक्ति वण प्रभुपद पाय, प्रजाजीवन निर्मल वर्ताय. त्यागी संतनी प्रेमे सेव, सत्ताए सहु आतम देवः मानी वर्ती चढती पाय, पडतीथी दूरे थै जाय. ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्यने शूद्र, निजगुण कर्मे थाय न रुद्रः निजगुण कर्मो करता रहे, लोको प्रजात्वशक्ति लहे. सर्वविश्व मानवनी साथ, आतमबुद्धि भक्ति सनाथ; पशुपंखीमां आतमबुद्धि, धारी प्रजा ज पामे शुद्धि. आतमशुदिमाटे राज्य, आतमशुद्धिमाटे काज; एवू लक्ष्य न ज्यां भूलाय, प्रजोन्नति सहु वाते थाय. सद्गुणमाटे भूपने राज्य, सद्गुणमाटे सर्वे काम; मजा समजती एबुं जेह,-तेनो बळवंत राष्टूसुदेह.
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