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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संघनी भक्ति ते प्रभुभक्ति, संघसमी नहि कोइ शक्ति जैनधर्मने माने संघ, वर्ते आतम वाधे रंग. संघाझामां म्हारी आण, समाइ जाती योग्य ज जाण; क्षेत्र अने कालानुसार, करे संघ ते मुजसम धार. जे काळे जे क्षेत्रे धर्म, जीवे तेनां जे जे कर्म; संघाझाए तेह कराय, मुज आज्ञा ते जाणो न्याय. संघनी वृद्धिनां जे कर्म, तेमां सर्व समाया धर्म संघनी सेवाभक्तिमांद्य, तपजप संयम सर्व समाय. सर्वसंघनी करतां स्हाय, अनंत पुण्यने निर्जर थाय; विरतिवण पण संपनी सेव, करतां भक्तो थावे देव. संघनी रक्षाद्धिहेत, सेवाभक्तिनो संकेत भक्तोमा मुज देखे जेह, भक्ति करतां भक्त ज जेह. संघमां मुजमां भक्ति अभेद, करे न भीति लज्जा खेद एवा भक्तोमां भगवान् , आतमव्यक्त थतो गुणवान् . भावे संघनी सेवा याय, अनंतभवनां पातिक जाय%; संघनो शत्रु निन्दक थाय, पाप करी दुर्गतिने पाय. सर्वनयोनो नाण जे संघ, प्रगटावे सहु शक्ति अभंग; सर्वप्रकारे विद्या जाण, मुज श्रद्धा भक्ति गुणखाण. मुज शासन चलवे ते संघ, तेना सवळा कर्मना रंग; अवलं पण सबलं प्रणमाय, मारा संघनी सद्गति थाय. सम्यग्दृष्टिवाळो संघ, सवळा तेना दृष्टितरंग; मिथ्याचाखो पण प्रणमाय, सवळीदृष्टिए गुणदाय, एवा संघनी सेवा थाय, त्यारे पाप अनंतां जाय. कदिन देखो संघना दोष, दोष छतां संघ ज निर्दोष संघ करे जे जे फेरफार, मुज आज्ञा त्यां छे निर्धार. For Private And Personal Use Only
SR No.008545
Book TitleBhajanpad Sangraha Part 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year
Total Pages198
LanguageGujarati, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati & Worship
File Size9 MB
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