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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १४८ जेह शमावे प्रेमे द्वेष, प्रजावर्गना टाळे क्लेश; नीति सद्गुणीराजा बेश, करे कर्तव्यो जेह हमेश. महामारी दुष्काले जेह, प्रजावर्गने रक्षे तेह सर्वप्रकारे करे उपाय, धर्मी राजा सत्य गणाय. सर्वप्रकारे नीति जाण, धर्मार्थे निज अर्षे प्राण: देशराज्यमां चलवे आण, दोष हणी थावे गुणवान् . चेटकराजन् ! तुं गुणखाण, तुं मारी पाळे हे आण; अंतर्मा मारुं कर ध्यान, तेथी तुं पामीश निर्वाण. अष्टादशराजामां मुख्य, प्रगटावो आतमनुं सौख्य, आतमना उपयोगे रहो, बाह्यराज्य नीतिए वहो. जैनधर्मने जग फेलाव, बाह्यांतरशक्तियों पाव चेटकने प्रतिबोधी प्रभु, वीर थया त्यागी शुभ विश्व. प्रभुवाणी सुणतां नरनार, भूपति पामे धर्म अपार; बुद्धिसागरप्रभु उपदेश, सुणी वर्ततां रहे न क्लेश. ॥ संघ कर्तव्य ग्रन्थ. ॥ चोपाई. ईश्वर महावीरदेव जिनेश, संघधर्मनो दे उपदेश; सत्कर्मोने ज्ञाने संघ, अनंततीर्थस्वरूपी रंग. जंगमतीर्थ छे संघ महान्, तेने सहु प्रणमे भगवान; सर्वधर्मनी खाण छे संघ, स्वर्गगाथी मोटी गंग. साधु साध्वी त्यागीवर्ग, श्राद्धश्राविका गृहस्थवर्ग; चातुर्वर्णी संघ गणाय, पूजे प्रणमे मुक्ति थाय. तीर्थकरसम संघ गणाय, संघविषे सहु संघनी सेवा प्रभुनी सेव, संघ छतां सहु वर्ते देव. तीर्थ समाय For Private And Personal Use Only २१ २३ २३ २४ २५ २६ २७ ३
SR No.008545
Book TitleBhajanpad Sangraha Part 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year
Total Pages198
LanguageGujarati, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati & Worship
File Size9 MB
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