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गांडो घेलो पण भक्त हुँ तारो, तुं छे प्राणथी प्यारो अलख अकल तुजने न लखुं हुं, तेमां नहीं दोष मारो. प्रभु० ३ तुज स्मरंतां यत्न करतां, प्रगटे दोष विकारो; सबळाथी नवळो हारे त्यां, करशो न्यायविचारो. प्रभु०४ अज्ञानी हुं भूलं तेमां, भूलनो हेतु सुधारो.... तुज शरणे आव्या पछी मारो, तुज शिर छे सहु भारो. प्रभु०५ तारो डूबे ने ज्ञानी भूले, हुं अज्ञान छु बाळो; तारो उगारो तमारो आधारो, दोष हवे शुं मारो. प्रभु०६ जेवी बुद्धि तेवी रीते, थयो हुं महावीर तारो . बुद्धिसागर व्हारे आवो, अरजी उरमा स्वीकारो. प्रभु०७
जगत्में हम है सबसे नठारा.
आशावरी. जगत्में हम है सबसे नठारा, सवजीवोंकी निंदा जबतक तबतक हमही नठारा................. ...................जगत में जबतक राग रु रोष प्रगटत है, तब तक दोष अपारा; गुणीपनाका क्या अहंकारा, जबतक दिल्में विकारा. जगत्में० १ निदोतो सब हमकुं निदो, यो हमकुं धिक्कारा; हमही हमकुं निंदत गर्हत, पश्चात्ताप आरा. जगत्में० २ ज्ञानपनाका गर्व क्या करना, हम है मूर्ख गवारा; बकवादी हम करत लवारा, हमपर मोहसबारा.. जगत् में० ३ परब्रह्ममहावीरमभुका, शरण किया मुखकारा; पुद्धिसागरसंतजनोंकी, संगत्से है उद्धारा. जगत्में०.४
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