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षट् चक्रोकुं भेद गगनगढ, जितनिशान चढाया; ध्याता ध्येय ह ध्यान कछु नहि, कथनी में नहि आया. हमने० २ अनहदध्वनिसें अग्रे जाकर, परापारकुं पाया; बुद्धिसागर पेखे सो माने, गानेसें न जनाया.
हमने० ३
यातम!!! निजनो सेवा सारी.
आशावरी राग आतम ! ! निजनी सेवा सारी, निजभक्ति गुणकारी. आतम० आतमशुदिअर्थे द्रव्यने, भावथी सेवा सारी; देहदेवळमां आतमदेव छे, भक्ति करो भयहारी. आतम० १ मनवचतनु- रक्षण पुष्टि, मनः नसंयम धारी आतमने परमातम करवा, समनो अपेक्षा विचारी. आतम०२ गुण प्रगटाववा दुर्गुण हरवा, निजआतमहितकारी उपकार सत्कर्म भक्तिने सेवा, आतमशुदिकारी. आतम०३ आतमनी करे आतम सेवा, भक्ति अपेक्षा धारी आतमभक्तिए आतम प्रगटे, परमातम सुखकारी. आतम०४ अष्टांगयोग ते आतमभक्ति, चरणसेवा जयकारी; खानपानादि सबळी प्रवृत्ति, सेवारूप छे सारी. आतम. ५ सम्यग्ज्ञानीनी सर्वप्रवृत्ति,-वृत्ति छे सेवा प्यारी; बुद्धिसागरआत्मप्रभुनी, सेवा असंख्यप्रकारी. आतम०६ हमारा भजनोकुं नहिं गाना.
आशावरी. हमारा भजनोकुं नहि गाना, हम है पागल बडा दिवाना; तुमभी होगा दिवाना....................................हमारा० कच्चापारद खाना जैसा, जैसा सोमल खाना; ऐसे मानविना भजनोकं, गानेसे पस्ताना. हमारा०१
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