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गुरुमाहात्म्यने
श्रमण, संयत, साधु, मुनि, भिक्षुक आदि नामा, पर्यायवाची शब्दनाम समजे हितकामा; अर्थ एकता दील धरी सद्गुरुनी सेवा, कीजे प्रेमे परगट मुनिवर ए छे देवा: संयत सद्गुरु देवता दर्शन वंदन कीजीए, तीर्थजंगम महामुनिवर सेवे शिवपुर लोजीए. ॥ १२५ ॥ गायुं जंगमतीर्थसुरागे, वांची अर्थ विचारी भव्यो मनमां जागे: साधुं पंडित मनमां लागे सार ग्रह्याथी, दोषदृष्टिथो दोष ज भासे दोष ग्रह्याथी; सवासो छप्पाथकी ग्रंथ कोधो प्रेमथी, गुरुस्तुतिथी गुणवृद्धि प्रगटती ए नेमथी. ॥ १२६ ॥ पार्श्वप्रभु ने पद्मप्रभुमंदिरथी सोहे, सानंद सारुं शहेर भव्यना मनमां मोहे: ओगणीशत्रेसठ साल चातुर्मासी कोधी, कथी देशना श्राद्धजनोने शिक्षा दीघो; भाद्रवद एकादशी ग्रंथ पूरी ए कर्यो, परंपरागम पामीने में पक्ष साचो अनुसर्यो ||१२७|| श्रीसंखेश्वर पार्श्वजिनेश्वर मंगलकारी, धर्मप्रभावक पार्श्वयक्ष जेना गुणधारो: धरणेंद्र पद्मावती सेवित मंगळ करशो, चिंतामणि तुज नाममंत्रथी वांछित सरशो; शाशन रक्षा स्हायमां महिमा अपरंपार छे, बुद्धिसागर पार्श्वनामे जगमां जयजयकार छे. ॥१२८॥ ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः
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