________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
૮૧ वंदन ते करजोडन नमन ते शीश नमावे, यशोविजयजी वाचक ज्ञानी एम ज गावे; मातपिताने कळागुरुने वन्दन एवं, तथा नमन छे मोटा जनने जगमां एg; चर्चा तेनी नहीं अहीं कंइ तेमां कांइ न हानि छे, शिष्टाचारे वात एवी शास्त्रमा तो मानी छे. ॥११३॥ तेवा वन्दन नमने अत्र न चर्चा चाली, पंडित एवी करे न चर्चा फोगट खाली; मुनिपेठे घरबारी गुरुने मानी पूजे, खमासमणने देवे पापनाभयथी न ध्रुजे; पाखंड चलवे मोहथी चर्चा तेनी थाय छे, गृहस्थने तो साधु वांदे महा ए अन्याय छे. ॥११४॥ लिंग अने आचार ज्ञानथी संयत सारा, खमासमण देइ मुनि वंदो जग जयकारा: यथायोग्य गुणमान जगत्मां सहुनुं कीजे, सद्गुण दृष्टि धरी हृदयमा गुणने लीजे; तत्त्वाभ्यासी मुनिवरा सेवीए सुखकार छे, ध्यानदृष्टि जागता जे वन्दन वार हजार छे. ॥११॥ मुनिभक्तिथी शक्ति प्रगटे जोजो जागी, अनेकांतदृष्टिना धारक आतमरागी; आतममां लयलोन सदा अंतरमा वासी, नहि हर्ष के शोक मटी छे सकळ उदासी: मुनिवर एवा वंदतां कर्मकलंक कपाय छे, स्फुरे संयम शक्तियो सहु आतम निर्मल थाय छे.॥११६।।
For Private And Personal Use Only