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॥ सद्गुरु स्वरूप ग्रन्थ ॥ अर्ह मंत्र स्मरी मुदा प्रणमा गुरु देवा, स्पर्शमणि गुरुराय करोने भावे सेवा; महात्म्य अपरंपार धर्मना धोरी ज्ञाता, विश्वमणि विख्ययात धर्मप्रभावक दाता. पंच महाव्रत धारीने संयम नोर्मल सेवता, सुखसागर गुरुजी नमा गुरु दीवो ने देवता ॥१॥ कनक कामिनी त्याग करीने ममता वारी, तजी कुटुंब परिवार आत्मनी श्रद्धा धारी. धरी ब्रह्ममी गुप्ति मोहने जीते शूरा, धर्मक्रियामां रक्त ज्ञानमां जे छे पूरा; बोले तेवुं पाळता नहिं सत्य उवेखता, सुखसागर गुरुजी नमो गुरुदीवो ने देवता ॥२ संयमधारी गुरु, सर्वथी शोभे मोटा, बोले साधुं तत्व कदी नहि वाळे गोदा; उपदेशक मुनिराय गुरुजी शोभे साचा, निर्मल गंग समान गुरुनी साची वाचा. मोह महीधर भेदवा गुरु गिरापवि लेखीए, संघ चतुर्विध तीर्थमां महातीर्थ मुनि देखीए. ॥ ३॥ सह तीर्थमां तीर्थ मुनिवरगुरुने 'जाणो, शाशन वाले मुनि गुरुथो वचन प्रमाणो: जाणो संयति मुनि महादर्शन सुखकारी, वंदो पूजा मुनि गुरु जे पर उपकारी; रजोहरण मुख वस्त्रिका घरी व्यवहारे चालता, निश्चय आतम ध्यानमां समता संगे म्हालता. ॥४॥
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