________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
3४८ स्वदेशी चीजो वापरो. संतो सत बत्तलानारे-ए राग.
लोको ग्रहो स्वदेशी चीजो,वापरी मनमांहि बहु रीझा.. दया स्वरूपी स्वदेश खादी, सस्तोने बहु सादीरे; वापरतां आतम आबादी, थाय नहीं बरबादी. लोको. १ सत्य स्वरूपी सादी टोपी, शिरपर मूकी म्हालोरे दुर्गुण सब परदेशी चीजो, छंडी न्यायथी चालोलोको.२ सद्गुणरूपी स्वदेशी चीजो, विश्वमां घट घटमांहीरे; एवी स्वदेशी चीजो लेतां, विश्वमा दुःख न क्याहि.
लोको. ३ मनमा मोह ते परदेश ज छे, दुर्गुण चीज परदेशीरे; सब दुनिया जीवो निज सरखा, मानी रहो न देषी.
लोका. ४ दुनियानी चीजोमां म्हारं, त्हार भेद न धारोंरे; दुर्गण व्यसन निवार्या वण तो, कोनो नहीं उद्धारो.
व लोका. ५ आतम छ निज देश हमारो, गुण सहु एनी चीजोरे; अमे वापरीए एवी चीजो, जडवादे नहीं खीजो.
लाका. ६ हिंसादि, आस्रवनी वर्धक, व्यसन दोष धरनारीरे; खानपान आदि वस्तुओ, परिहरशो नरनारी. लोको. दुनिया लोका ! स्वदेशी चीजो, एवी ग्रही वापरशोरे; बुद्धिसागर प्रभु राज्यमां,अनंत सुखथी ठरशो.लोको.८
For Private And Personal Use Only