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ભાગ આમે.
दिलका तारोतार लगा दें, प्रभुकी साथे सदा मुदा; अजपाजापे सुरता रख दे, पड नहि कुमतिसङ्ग कदा. चिदानन्दकी मोझे खेलो, आत्मप्रभु तुं है सञ्चा; बुद्धिसागर अलख निरञ्जन, ब्रह्म अन्य सब है कच्चा. ७
સંવત ૧૯૭૨ ના કાર્તિક સુદ ૬. देश मारवाड राणी स्टेशन गाम सामेल वास्तव्य
यति पूनमचन्दजी पर लखेल पत्र. आत्मस्वभावे मस्त रहेना, विना प्रयोजन मत बोलो रागद्वेषकी वृत्ति हठा कर, पराभाव स्फुरणा खोलो. १ होता है होवेगा कर्मे, उसकी चिन्ता मत करना; उसका ना हम वह ना मेरा, सहजसमाधि वह धरना. २ अन्तरमें सुरता लय ला कर, दुसरा कुच्छ न याद करो भव मुक्तिकी आशा त्यज कर, समता सहजस्वरूप धरो ३ सहजे जो होता है उसमें, साक्षी हो कर जग रहेना; मस्तदशा ऐसी आभवमें, अनुभवी मत कंइ कहेना. ४ मौनी होकर जगमें रहेना, सुख दुःख समभावे सहेना; (सहना) जग कथनीमें लक्ष्य न देना, इच्छासें कुच्छ ना लेना. ५ मनकी गतागति मत रोको, मनका उपयोगी होना; मनकुं समजा कर अन्तरमें, ले जाना कल्मष धोना. आत्मप्रभुमें प्रेम लगे तब, मन उसमें झट रंगाता; सहजयोग उसकुं अवबोधी, तन्मयता ज्ञानी पाता. आत्मप्रभुका प्रेमी होना, सब दुनियाकुं भूल जाना; ऐसा उन्मादी निज अनुभव, पाता है निश्चय माना. सत्ताए सब जीवो ईश्वर, है ऐसा मनमें धरना;
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