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सापेक्षता देह सृष्टिकर्ता हर्ता मानीए,
व्यवहार निश्चयनयथकी अहो जीव इश्वर जाणीए. २९ सापेक्षा वण कर्त्ता हर्ता इश्वरमाने,
लहे न आत्मस्वरूप सस ते शुं मन जाणे; निराकार साकार हंस इश्वर छे जाणो, व्यवहारे साकार इतर निश्चयनय आणो; साकार कर्म संबंधथी छे चतुर्गति जीव जाणजोः कृत्स्न कर्मातीतयोगे निराकार शिव आणजो. लडालडी नहि सापेक्षाए तत्व विचारे, विना विचारे धर्म भेदनां युद्ध वधारे; धर्म भेदनो खेद टळे सहु नयना ज्ञाने, आत्मधर्म स्याद्वाद लहे छे सत्यपिछाने; लडालडी नहि धर्ममां कंइ सापेक्षवातो सहु अहो, समजीने अरे आत्मतत्वे साम्यभावे सुख लहो. माया कहो के कर्म कहो किस्मत पण ते छे, सांख्य प्रकृति कोइ कहे पण वस्तु ए छे. मारब्धादिक भेद कर्मना समजी लेवा. करवो कर्म विनाश ध्यानथी धरीने सेवा; चिदानन्द स्वरूप परखी शुद्धरूप विचारीए; ब्रह्म माया भेद समजी माया कर्म निवारीए, नय सापेक्षे धर्म एक छे गुरुगम लेशो, खंडन मंडन करो केम अरे समता वहेशो; समजावो सापेक्षवाद तो भेद न एके, करी कदाग्रह त्याग समजल्यो सत्य विवेके अनेकान्तनय सत्य बोधे सर्व साधुं परिणमे,
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