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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir क्षायिक केवलज्ञानमा, भासे सर्व पदार्थ केवलज्ञानाधार जीव, परम प्रभु परमार्थ. ___९८ चिदानन्द चेतन प्रभु, मळ्ता सुरता प्रेम, मुरता अन्तर लावीए, प्रगटे मंगल क्षेम. ध्यान धारणातानमां, देखो चेतन देव शुद्ध समाधियोगमां, अनुभवामृतमेव उपयोगी चेतन तरे, भवोदधिने खास चिद्घनअसंख्यप्रदेशनो, रोम रोम विश्वास. १०१ परमशुद्ध परमार्थ छे, आत्मतत्त्व आदेय; सर्व द्रव्यतो ज्ञेय छे, पुद्गलकर्म छे हेय. आत्मरमणता धर्म छे, बाह्यरमणता कम आविर्भावे आत्ममां, प्रगटे शाश्वत शर्म. अन्तरथी न्यारा रही, को बाह्यनां कर्म; ज्ञानी सहजदशा थकी, पामे शाश्वत शर्म. जे जे अंशे जाय छे, कर्म उपाधि दूर; ते ते अंशे जाणशो, चिदान्द भरपूर. शब्रह्मथी भिन्न छ, परमब्रह्म जयकार; परमब्रह्म अन्तर रघु, अन्तरदृष्टि धार. निश्चयने व्यवहारथी, ध्यावो अन्तर्देव अनन्त सुखनुं पात्र छे, क्षण क्षण कीजे सेव. १०७ स्वासोश्वासे ध्याइए, रही ध्याने गुलतान; पूर्णानन्दी प्रगटशे, सहजशुद्ध भगवान्. १०८ अष्टोत्तरात दोहरा, परिपूर्ण आ ग्रन्थ; वांचे ध्यावे जे जनो, पामे निश्चय पन्थ. संवत ओगणिस पांसठे, प्रतिपदा दिन वास; For Private And Personal Use Only
SR No.008539
Book TitleBhajanpad Sangraha Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year1909
Total Pages308
LanguageGujarati, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati & Worship
File Size12 MB
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