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आत्मद्रव्य आदेयछे, शुद्ध समय पण तेह; अनन्तगुण पर्यायमय, आत्मद्रव्य सुखगेह. आत्म द्रव्यमां हीनता, सहजयोग निर्धार; परमपन्थ जिनवर कह्यो, अन्तरंग सुखकार. अनन्त ज्योति झळहळे, भासे लोकालोकः आत्मद्रव्य जाण्या विना, पामे जगजन शोक. आत्मद्रव्यना ज्ञानथी, आनन्द हर्ष अपार; आत्म धर्म अन्तर रह्यो, जंगमां जयजयकार. यम नियम आसन अने, प्राणायाम विचार; प्रत्याहारने धारणा, ध्यान समाधि सार. योगाष्टकनी साधना, निर्मल आत्म प्रकाश; जैनागम गुरुगम थकी, परम प्रभुता वास. षड्द्रव्योमां आत्मद्रव्य, स्वपर प्रकाशक जाण; प्रति शरीरे भिन्न भिन्न, अनंत चेतन आण. केवलज्ञान प्रत्यक्षथी, लोकालोक जणाय; देखे ते जिन कहे, श्रद्धा मोक्षोपाय. जडनी शक्ति अनन्त पण, जडमां रही समाय; चेतनशक्ति अनन्त पण, जडमां कदी न जाय. अनाद्यनन्ति भंगीथी, षड्द्रव्यो वर्ताय; आत्मद्रव्य चित्शक्तिथी, प्रगटपणे परखाय. दर्शन ज्ञानानन्दगुण, चेतन तेनुं पात्र; सर्वतीर्थ शिरोमणि, चेतन द्रव्य सुयात्र. नवधा भक्ति आत्मनी, पट्कारकनी शुद्धिः सम्यग् ज्ञान चारित्रथी, प्रगटे क्षायिक शुद्धि. क्षायिक शुद्ध स्वभावमां, परमेश्वर कहेवाय;
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