________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
४५
अध्यात्म वचनामृत ग्रन्थ.
ऐन्द्रन्दनतवीर जिन, नमतां आत्मप्रकाश; अध्यात्म सुखमां ममता, शाश्वत शिवपुरवास. आत्माने उद्देशीने, पंचाचार प्रधान, शाद्ध अर्थ योगे सदा, लहीए आतमज्ञान. मैत्रादि वासित चित्त, निर्मल बाह्याचार; अध्यात्म तत्व निर्मल कह्यु, रुढयर्थी जयकार एवंभूतनये भलो, प्रथम अर्थ सुख कार; यथायोग्य बीजो कह्यो; अर्थ ऋजु व्यवहार विगतनय भ्रांति जना, स्वरूप सन्मुख चित्त; स्याद्वाद दृष्टि दृश्य तत्त्व, आत्मपात्र गुणवित्त युक्ति धेनुने अनुसरे, मनोवत्स धरी प्रेम. तुच्छाग्रह मन वांदरूं, खेंचे पुच्छने तेम. अनर्थ माटे युक्तियो, हठ कदाग्रह जोरः बुद्धि अवळी परिणमे, हस्ति हणे मत तोर. पामी हणे नहीं पामीने, करे विकल्पो मूढः हस्ती हणे ए न्यायमां, समजो साचुं गूढ. हेतुवादथी जाणीए, अतीन्द्रिय सहु ज्ञेय; काले निश्चय तत्त्वमा, हेय ज्ञेय आदेय. आगमवादे आप्तनी, करो परीक्षा सत्य; परोक्ष वस्तु सदहो, चेतन आदि मुकृत्य. छमस्थ केवलज्ञान वण, चक्षु रहित कहेवाय; हस्तस्पर्श सम शास्त्र ज्ञान, युक्ति मनधर न्याय, ११
For Private And Personal Use Only