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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org २३ नमिनाथ स्तवनम्. ए गुण वीर तणो न विसारु ए राग. नमि, १ नमि. ३ नमि जिनवर प्रभु चरणमां लागुं, शुद्ध रमणता मार्गरे; बाह्य परिणति टेव निवारी, शुद्धोपयोगे जागुंरे. अन्तरदृष्टि अमृतवृष्टि, सहजानन्द स्वरुपरे तन्मयता प्रभु साथै करती, शुद्ध समाधि अनुपरे नमि. २ असंख्यमदेशी चेतनक्षेत्र, गुण अनंत आधाररे; उत्पत्ति व्यय ध्रुवता समये, द्रव्यपणुं जयकाररे. ज्ञानचरण पर्यायनी शुद्धि, मुक्ति प्रभु मुख भाखेरे; अस्तिनास्तिनी सप्त भंगीथी, षड् द्रव्पोने दाखेरे नमि. ४ शद्वादिक नयशुद्ध परिणति, उत्तर उत्तर साररे; कारणे कार्यपशुं नीपजावे, द्रव्यभावे निर्धाररे. निमित्त पुष्टालंबन सेवी, उपादान गुण शुद्धिरे; शुद्धरमणता योगे करतो, पामे क्षकि ऋद्धिरे. सुखसागर कल्लोले चढीयो, लही सामर्थ्य पर्यावरे; शुद्ध परिणति चंद्र प्रकाशे, आनन्द क्यांय न मायरे नाम, ७ शुद्ध परिणति चरण शरणमां, शुद्धोपयोगे रहीशं रे; बुद्धिसागर ज्ञान दिवाकर, स्वपरमकाशी थइशुं रे, नमि. ८ नमि. ५ नमि० ६ acocoo Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private And Personal Use Only
SR No.008539
Book TitleBhajanpad Sangraha Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year1909
Total Pages308
LanguageGujarati, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati & Worship
File Size12 MB
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