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२२ मुनिसुव्रत स्तवनम्.
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तार हो तार प्रभु मुज सेवक भणी-ए राग.
तार हो तार प्रभु शुद्ध दिनकर विभु, शरण तुं एक छे मुख स्वामी ज्ञान दर्शन धणी सुख ऋद्धि घणी, नामी पण वस्तुतः तुं अनामी तार १ भोगी पण भोगना फंदथी वेगळो, योगी पण योगथी तुं निराळो; जाणतो अपरने अपरथी भिन्न तुं, विगत मोही प्रभु शिव म्हालो तार२ द्रव्य क्षेत्र अने कालने भावथी, आत्म द्रव्ये प्रभु तुं सुहायो; स्वगुणनी अस्तिता नास्तिता परतणी, शुद्ध कारकमयी व्यक्ति पायो ३ शुद्ध परब्रह्मनी पूर्णता पामीने, विष्णु जगमां प्रभु तुं गवायो कर्म दोषो हरी हर प्रभु तुं थयो, सत्य महादेव तुं छे सवायो. तार तार४ शुद्धरूपे रमी राम तुं जग थयो, शुद्ध आनन्दतानो विलासी; रहेम करतां थयो शुद्ध रहेमान तुं, शुद्ध चैतन्यता धर्म काशी. तार.५ नामने रूपथी भिन्न तुं छे प्रभु, जाण तो तत्त्व स्याद्वाद ज्ञानी; शरण तारू ग्रह्यं चरण तारू लहुं, रही नही वात हे नाथ छानी. तार६ भक्तिना तोरना जोरमां प्रभु मळ्या, सहज आनंदना ओघ प्रगटया; जाणुंपणकही शकुं म निर्वाच्यने, सकळ विषयोतणाकंद विघठ्या. ता७ एकता लीनता भक्तिना तानमां, घेन आनंदनी दील छबाइ; बुद्धिसागर प्रभु भेटीया भावथी, मुक्तिनी घेर आवी वधाइ. तार.८
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