________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
१६ अनंतनाथ स्तवन.
शांति जिन एक भुज, ए राग.
अनन्त जिनेश्वर नाथने, वन्दतां पाप पलायरे;
रवि आगळ तम शुं रहे, प्रभु भजे मोह विलायरें अनन्त. १ अनन्त गुणपर्यायपात्र : तुं, व्यक्ति एवंभूत साररे; संग्रह नय परिपूर्णता, ध्याता ते व्यक्तिथी धाररे. अनन्त. २ उपशमभाव क्षयोपशमथी, साध्यनी सिद्धि करायरे; धर्म निज वस्तु स्वभावमां, स्थिर उपयोग मुद्दायरे अनन्त ३ ज्ञानदर्शन चरणगुण विना, व्यवहार कुल आचाररे; साध्यलक्ष्ये शुद्ध चेतना, जाणवो शुद्ध व्यवहाररे. अनन्त. ४ द्रव्य क्षेत्र काल भावथी, पर्याय द्रव्य अनन्तरे;
शुद्ध आलंबन आदरी, व्यक्तिथी थाय भदंतरे. अनन्त. स्वकीय द्रव्यादिक भावथी, अनंतता अस्तिपणे साररे, पर द्रव्यादिक अस्तिनी, नास्तिता अनन्त विचाररे अन. ६ वीर्य अनन्त सामर्थ्यथी, उत्पाद व्यय प्रति द्रव्यरे; छति पर्यायथी ध्रुवता, समय समयमांहि भव्यरे. अनन्त ७ धर्म अनन्तनो स्वामी तुं, ध्यानमां ध्येय स्वरूपरे; बुद्धिसागर निज द्रव्यनी, शुद्धि ते जय जिन भूपरे अनन्त. ८
For Private And Personal Use Only