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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १४ वासुपूज्य स्तवनम्. गिरुआरे गुण तुम तणा. ए राग. वासुपूज्य त्रिभुवन धणी, परमानन्द विलासीरे; अकळकळा निर्भय प्रभु, ध्याने नासे उदासीरे. वासुपूज्य, १ जगजीवन जगनाथ छो, परमब्रह्म महादेवारे; वासुपूज्य. ३ व्यापक ज्ञानथी विष्णु छो, सुरपति करे पद सेवारे. वासुपूज्य २ आदि अनन्त तुं व्यक्तिथी, एवंभूतथी योगीरे; अनायनन्त सत्तापणे, गुणपर्यवनो भोगीरे. व्याप्य व्यापकता अभेदता, ज्ञाताज्ञेय अभेदीरे; भिन्नाभिन्न स्वभाव छे, वेदरहित पण वेदीरें. परम महोदय चिन्मणि, अजरामर अविनाशीरे; नित्य निरञ्जन सुरमयी, व्यक्तिशुद्ध प्रकाशीरे. वासुपूज्य. ५ निरक्षर अक्षर विभु, जग बंधव जग त्रातारे; क्षायिक नवलब्धि धणी, ज्ञेय अनन्तना ज्ञातारे. वासुपूज्य. ६ वासुपूज्य. ४ पुरुषोत्तम पुराण तुं, तुज ध्याने सुख लहीभुंरे; बुद्धिसागर शुद्धता, पामी जिनपद रहीभुंरे. For Private And Personal Use Only वासुपूज्य ७
SR No.008539
Book TitleBhajanpad Sangraha Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year1909
Total Pages308
LanguageGujarati, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati & Worship
File Size12 MB
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