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पत्र. १५८
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विषय. शुद्ध स्वरूप प्राप्तव्य छे मातः स्मरणीय हितशिक्षा ... हितशिक्षारत्न उच्चबोध अन्तरमा सुरता प्रवेशना उद्गार योगी चतन हंसीनो चेतन हंसने उपालंभ जोया बाद सार नथी क्षमापना निश्चय व्यवहार गर्भित सीमंधर स्तवन आनंदघनजी कृत योगपद ... यशोविजय कृत पंचपरमेष्ठी गीता यशोविजय कृत पार्श्वनाथ भावस्तवन यशोविजय कृत ऋषभ स्तवन यशोविजय कृत शीतलनाथ स्तवन यशोविजय कृत समुद्रवहाण संवाद श्री ज्ञानसार भाव षड्विंशिका गुंहळी मूर्ति पूजन महिमा गुर्जर भाषामां षष्टक श्री सात क्षेत्रनो रास
सं. १३२७ नी सालनो श्री यशोविजय वाचककृत ब्रह्मगीता .. श्री यशोविजयकृत आदिजिन संस्कृत स्तवन
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