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१७२
॥कळा
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इय विमल केवल ज्ञान दिणयर, सफर गुण रयणायर; अकलंक अमल निरीह निरमम, वीनव्यो सिमंधरु. श्री विजयप्रभ सूरी राजे, विकट संकट भय हरो; श्री नय विजय बुध चरण सेवक, जश विजय बुध जय करो. ?
अथ श्री आनंदघनजी महाराजनी कृत योग पद ता योगे चित लाउं, बाला ता योगे चित लाउं (ए टेक) समकित दोरी शलि लंगोटी, गुण गणि गांठ लगाउं; तत्त्व गुफामें दीपक जोवू, चेतनगय जगाउं. पाला. १ अष्ट कर्म कंदेकी धूनी, ध्यानसे अंग जलाउं; उपशम भश्म भस्म छाणके, मिल मिल अंग लगाउं. बाला. २ आद्य गुरुका चेला होय के, मोहसे कान फरा; धर्म शुकल दोय मुद्रा सोहिए, करुणा नाद बजाउं. बाला. ३ अयेंसे योग सिंहासन बेसी, मुक्तिपुरिमां जाउं; आनंदघन अविनाशि आतम, फेर कलिमें न आउं. बाला. ४
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