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१६२ मिथ्या जनित मन तिमिर भ्रान्ति क्षणिक स्थिरता शुं करे.१ आत्मजीवनदीप्तिवृद्धिशर्मस्वादितयतिपति. अध्यात्मयोगिकमार्ग पोधे ज्ञानयोगे जिनपति; कर्णसंपुट गिर सुधारस हृदय पंकज उतरे, स्याद्वादशासन पापनाशन भव्यजनमनमां घरे. लक्ष्यवृत्ति लक्ष्यमा तो बाह्यथी भिन्नज अहो, अशुभवृत्ति क्लेश टाळी शुद्धमा राजी रहो सर्वतः निस्संग थइने संग चिद्घन साधीए, परमात्मव्यक्तिदिव्यमाप्ति योगयी झट वाधीए. सध चेतन द्रव्य लक्षण सप्त नयथी धारीए, शुद्ध निर्मल स्फटिकवत् छे नित्य चेतन धारीए; परमज्योति परमशांति तत्त्वमसि निश्चय कर्यो, बुद्धिसागर परम मंगल लाभ निश्चय मन धर्यो.
अन्तरमा सुरताप्रवेशना उद्गार.
मन मोडं जंगल केरी हरणीने-ए राग. मारी सुरता अन्तरमांहि लागीरे, हुं तो थइयो अन्तरगुण रागीरे मारी. दुनियादारी दूर निवारी, हुँतो बनीयो अन्तर वैरागीरे. मारी. १ नर के नारी नहि नपुंसक, भान भूल्यो रागी के हुं त्यागीरे.मारी.२ दुनिया डहापण दूर निवायु, मोह बेटी कुमति दूर भागीरे.मारी. ३ अलख अरुपी अजरामर हूं, शुद्ध चेतना घटमां जागीरे मारी. ४
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