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१६१ धर्म ग्रन्थो वाचवाथी धर्म श्रद्धा उपजे, गुरुनी भक्ति जे करे ते उच्च जगमां नीपजे; सर्वेनुं सारु करे ते श्रेष्ट जगमां थाय छे; सत्य पन्थे चालवायी देवतानी हाय छे. कोईनो सद्गुण कह्याची झेर कदीय न थाय छे, सर्व जन सारु बोले मित्र सत्य गणाय छे; कोईने पीडे नहि ते धर्म मूर्ति जग खरे, माध्यस्थदृष्टि जे धरे ते ससयुक्ति अनुसरे. विनय वैरी वश करे छे विनय उत्तम आदरो, आत्मश्रद्धा हृदय धारी दोष सघळा परिहरो उच्च थाशो नक्की जगमा उच्च जन सेवा करे, गुरु वचनने लोपशो नहि सत्य शिक्षा छे खरे. शुद्ध चेतन रूप समजी धर्म करणी कीजीए, आत्मध्याने अनुभवामृत प्रेम प्याला पीजीए। जागशो नरनारीओ झट पाप वृत्ति परिहरी. बुद्धिसागर हृदय शुद्धि आत्मश्रद्धा सुखकरी.
उच्चबोध.
हरिंगीतछंदचाल. उच्चवृत्तिप्रेम माटे उच्चजनमन आथडे, नीचत्तिप्रेम माटे नीच जनमन लडथडे; विवेकदृष्टिसत्यरविकर भरतिमिर मिथ्या हरे,
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