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१४८ लेख लख्याथी शुं ययु, बहु बोले शुं थाय) अन्तरमा निश्चय रहो, परमप्रभु परखाय. सार सार सहु ग्रन्थनु, समजो आतमदेव बुद्धिसागर आत्मनी, भावे कीजे सेव.
परमप्रभुता.
अलख देशमें वास हमारा-ए राग. परम प्रभुता घटमां भारी, चिदानन्दमय परखाणी; लागी लगनी अलख देशमां, सप्त धातुओ रंगाणी. पारीरनी परवाह नथी कंइ महारु में शोधी लीधुं; पोतानुं पोते में जाप्यु, भाव दान निजने दीधुं. उच्चभाव अन्तरथी प्रगटयो, आत्मभाव ज्यां त्यां प्रसर्यो भूलाणी सहु दुनियादारी, मोहभाव मनथी विसर्यो. जे जे अंशे निरुपाधित्व, ते ते अंशे धर्म धर्यो, जे जे अंशे सुरता लागी, ते ते अंशे धर्म चर्यो. जे जे अंशे शुद्ध समाधि, ते ते अंशे छे मुक्ति जे जे अंशे शुद्ध रमणता, आनन्दनी अंशे भुकि. आत्मराग छे जे जे अंशे, पर प्रीति अंशे उत्तरी ज्ञानी ज्ञाने सर्व समातुं, सुरता निजपद ठाम उरी. हेय ज्ञेयने उपादेयथी, मोझीलो हुँ मलकायो साहु रुद्धि घट अन्तर भासी, समताभावे हुं आयो. अलख देशनी अलख फकीरी, पामी परमानंद पर्यो बुद्धिसागर चिदानन्दमय, निश्चय निमपद अमर्यो.
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