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सम्यक्त्व वधारी, वृत्तिनिहारी; देश विहारी, सुखकारी. गुण व्यकित प्रचारी, कर्म विदारी; जगदुपकारी, बलिहारी. १ तें मोह निवार्यो, जाय ते हार्यो; आतम तार्यो, उर धार्यो. ते शिष्य सुधार्यों, पार उतार्यो; गुणमा ठार्यो, भव तार्यो. जग धर्म वधार्यों, प्रेम प्रसार्यो; राग विसार्यों, शिवकारी. गुण व्यक्ति प्रचारी, कर्म विदारी; जगदुपकारी, बलिहारी तुं सद्गुण गामी, जयनिष्कामी; अन्तर्यामी, स्वर्गामी. तुं छे निष्कापी, ब्रह्म अनामी, निनपद पामी, बहु नामी. जगजय गुणकामी, मन विश्रामी, वाणी स्वामी, कामारि. गुणव्यक्ति प्रचारी, कर्म विदारी; जगदुपकारी, बलिहारी. तुं छे पूर्णाशी, गंगाकाशी; त्यजी उदासी, विश्वासी. कापी तें फांसी, लेश न हांसीः पूर्ण प्रकाशी, गुणवासी. शिवपुर निवासी, धर्म विलासी; कीर्तिदासी, छे तारी. गुणव्यक्ति प्रचारी, कर्म विदारी; जगदुपकारी, बलिहारी. ४ तुं मनमा प्यारो, निश्चय सारो; प्राण हमारो, निधार्यो. हुँ शिष्य तमारो, उर उतारो शिघ्र सुधारो, जन्मारो. उर प्रेम वधारो, करो न न्यारो; पाप निवारो, ल्यो तारी. गुणव्यक्ति प्रचारी, कर्म विदारी, जगदुपकारी, बलिहारी. ५ कोइ वात न छानी, नहि अभिमानी, आतम ज्ञानी, गुण गानी; समतामृतपानी, अन्तर्यानी, आतम ध्यानी, मस्तानी गुणगणनी खानि, लेश न हानि, सद्गुणदानी, कामारी; गुणव्यक्ति प्रचारी, कर्म विदारी, जगदुपकारी बलिहारी. ६ लळीलळी करगरथु, विनति करशुं, सत्य उच्चरशुं, सुखवरशुं; मुख निर्मल धरशुं, भ्रांति हरशुं, कदी न डरशुं, संचरडूं.
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