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प्रभु. ?
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प्रभुप्रीति. लगा कलेजे छेद गुरोकारे. ए राग प्रभुनी प्रीति मजानीरे, जीवलडा सय धर्मथी करीए; जड वस्तुथी प्रीति हरीने, प्रभु उपर सहु धरीए. प्रभु परम प्रेममां तन्मय थइने, आनंद मंगळ वरीए. ज्यां त्यां प्रभुनुं ध्यान धरीने, तन्मय थइने खेलो; दुनियादारी दुःखनी क्यारी, जाणी पडती मेलो. प्रभुनी प्रीति विना शुं खावं, नाहक ज्यां त्यां जाएँ; परम प्रभुमा प्रेम मजानो, परमब्रह्म झट पावं. प्रभु प्रेमना प्याला पीने, चिदानन्द पद ध्या एकमेकता प्रभुनी साथे, अन्तरदृष्टि जगावं. अलख अरुपी असंख्यप्रदेशी, प्रभु साथे रंगायो; बुद्धिसागर सोऽहं सोऽहं, परम प्रभुता पायो.
प्रभु. २
प्रभु. ३
प्रभु. ४
प्रभु. ५
गुरु स्तुतिः
दुहा.
यतिततिपतिसुखकरगुरु, जयजयजन मननाथ; सरसवचन रस अर्पोने, निशदिन करो सनाथ. ॥१॥
चतुर्भगी छंद. जय तत्व विचारी, दीक्षा धारी; संयम सारी, जयकारी. बहु पाप निवारी, समतागारी; समिति धारी, गुणभारी.
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