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प्रिय पोताने सुख अन्यने तेमज व्हालं, परने नावे दुःख अहो हुं तेमज चालु आत्मवृत्ति दयामयी तो मुक्ति करमां जाणशो, समजीने अहो भव्य लोको दया धर्म मन आणशो. पोताना सम अन्य जीवोने निश्चय धारे, प्राण पडे पण अन्य जीवोने कदी न मारे; गृहस्थ धर्मने योग्य दयानी रहेणी राखे, साधु निज पर हेतु दयाथी शिव सुख चाखे दया धर्मनी माहात्म्यथी अहो देवता पाणी भरे, बुद्धिसागर दया वहाणी जगत्मां सहु जन तरे. दया धर्मनी कहेणी समजे रहेणी राखे, दया धर्मना सुख खरेखर ते जन चाखे। दया धर्मनी परोपकारि वृत्ति मोटी, दया धर्मवण धर्मनी कहेणी लागे खोटी दया धर्मवण जगत्मा अहो सुख नहि तलभार छे, बुद्धिसागर दया धर्मथी जगत्मां जयकार छे. जेवुं बावो तेनुं लणशो दया कर्याथी, दया धर्मथी उच्च भावना सत्य वर्षाथीः दया धर्मथी परम प्रभुता घटमां जागे, इंद्र चंद्र नागेन्द्र खरेखर पाये लागे दयाना बहु भेद भाख्या एक पण जे आदरे, बुद्धिसागर सिद्ध पदवी प्राणी ते प्रेमे बरे. दया धर्ममा उच्च खरेखर जूठ न बोले, दया धर्ममां उच्च खरेखर कूट न तोले; ब्रह्मचर्यना भेद दयामां सर्व भळे छे,
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