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कुंटुंबमां कंकास हासीथी राज्य विनाशे, आवे दुर्मति पास रहे नहि सुमति पासे सदाचरणनो नाश हांसीथी छोकरवादी, पामे नहि सन्मान कहे जन छे उन्मादी; हास्य करतां जगत्मां अहो दोष श्रेणि जन लहे, हास्यमा अहो सार शुं छे उच्च तेने शुं वहे. ठठा हांसी दुर्गुण हेतु परखी लेशो, परनी हांसी करवामां जन लक्ष न देशो परनी हांसी करवामां छे निजनी हांसी, विद्वज्जन अरे पाद उपर केम मारे वांसी; उच्च सद्गुण धारीने अहो सत्य वाणी दिल धरो, बुद्धिसागर सत्य शिक्षा पामी प्राणी सुख वरो.
दया
छप्पय छंद. दया सर्वथी श्रेष्ठ दयामां धर्म समाया, दया धर्मनुं मूळ दयाथी सुरनरराया; दया धर्मथी सुख दयाथी पाप टळे छे, दया धर्मथी मोक्ष दयाथी पुण्य मळे छे द्रव्य भाव बे भेदथी अहो दया जगत्मा सार छ, उच्चमां ते उच्च भव्यो धन्य तस अवतार छे. प्रिय स्वकीय प्राण अन्यनो तेम खरे छे, पोताने जेम दुःख अन्यने तेम अरे छ।
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