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कामकुंभ सुर द्रुमथी अहो ज्ञानी उपकारी बहु, सम्यक्त्व दर्शन जीव पामे ज्ञानी शोभा शी कहुं ज्ञानि जनने सहाय करे ते प्रभुता पामे, ज्ञानिनी बहु भक्ति करे ते ठरतो ठामे; परखे ज्ञानी कोइ जेहने ज्ञान प्रकाश्युं, परखे ज्ञानी कोइ चित्त समताए वास्यु चंद्र सूर्यने मेघथी अहो ज्ञानि महिमा बहु कयो, बुद्धिसागर ज्ञानि संगे आतमा निजपद लह्यो. पंच महाव्रत धरे हृदयमां समता धारे, ज्ञानतणुं फल विरति निश्चय एम विचारे निश्चयदृष्टि चित्त धरे व्यवहारे चाले, स्थिरोपयोगे अनुभव सुखमां निश्चय म्हाले; अनुभवीए अनुभव्युं छे ज्ञानफळ शिव धर्म छे, बुद्धिसागरं सत्य ज्ञानी परम शिवपुर शर्म छे.
कहेणी रहेणी.
___ छप्पय छंद. कहेणी सम रहेणी राखे ते वक्ता साचो, कहेणी सम रहेणी नहि जेनी ते जग काचो; कथनी कथनारा वर्ते छे जगमां लाखो, मासाहस पंखी सम कहेणी काढी नाखो; कहेणी सम रहेणी खरेखर कोइ ज विरला धारता, बोली बणगां कुंकता ते चेतनने नहि तारता.
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