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ज्ञानी.
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छप्पय छंद. सत्य ज्ञानी छे तेह खरेखर समता राखे, उलट आंखथी ध्यान धरी मुख रसने चाखे, करे उपाधि दूर खरेखर मननी सघळी, परिहरे छे दुःखकर सघळी चिंता सगडी; द्रव्य क्षेत्रने काळ भावेज वस्तु धर्मने जाणतो, दुर्गुणो सहु दूर करीने सद्गुणो मन आणतो. विस्तृतदृष्टि राखी जननुं भव्य विचारे, सदाचार धरी आप तरेने परने तारे कपट क्रियामां रंगातो नहिं मोह धरीने, धामधूममा रंगातो नहि मान करीने स्थिरोपयोगे नित्य रहेवे पर रमणता परिहरे, बुद्धिसागर ज्ञानी जनने धन्य छे मुखडां वरे. भणे भणावे ज्ञान ज्ञानिनी छे बलिहारी, ज्ञानिनी शुभ संग ज्ञानी छे महावतारी; ज्ञानी निर्मल वाण सुणीने सहु जन बुझे, ज्ञाने सत्य विवेक ज्ञानथी सत्यज मुझे;' ज्ञानी सेवा जे करे ते चिदानंद पदवी वरे बुद्धिसागर ज्ञानि जनने दुनिया वंदन करे. करो ज्ञानिनुं मान ज्ञानिथी शासन चाले, करो ज्ञानिनी सेव ज्ञानीजन शिवमा म्हाळे;
आत्मज्ञानिनी आण धरंतां मुखडां पासे, करे कुमातिनो नाश उपाधि सर्व विनाशे;
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