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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ८८ जुओ. ४ परमब्रह्म पुरुषोत्तम स्वामी, योगीना पण योगीरे. शक्ति अनंति समय समयमां षद्गुण हानिवृद्धिरे, बुद्धिसागर चेतन चिन्हे, थावे जिनपद शुद्धिरे. जुओ. ५ मैत्रीभावना धारो. राग उपरनो. ज्या त्या मैत्रीभावना धारो, इा दोष निवारोरे; दुश्मन कोइ न जीवों मारा, साचुं तत्व विचारोरे. ज्यां त्यां. १ स्वार्थ धरी कोइ जीव न मारो, मरता जीव उगारोरे; दया धर्ममा मूल खरु छे, मैत्री भावमा धारोरे. ज्यां त्यां. २ सर्व जीवो जो मारा मित्रो, तो केम अन्यने मारुरे. मैत्रीभाव त्यां कदी न हिंसा, सत्यतत्त्व अवधारुरे. ज्यां त्यां. ३ द्रव्यभावथी मैत्रीभावना, शाश्वत सुख करनारीरे; मोह दोषनो नाश करेछे, परमधर्म धरनारीरे. ज्यां त्यां. ४ चंडकोशिया सर्पनी उपर, मैत्री भावना सारीरे वीरजिनेश्वरना मनजाणो, बुद्धिसागर प्यारीरे. ज्यां त्यां. ५ निन्दा त्याग. उठो चेतन आळस छंडी-ए राग अथवा प्रभात राग. कर्माधीन छे संसारी जीव, निन्दा कोईनी न करशोरे; निन्दा करता नीचपणुं छे, शिक्षा दिलमा धरशोरे कर्मा. १ For Private And Personal Use Only
SR No.008539
Book TitleBhajanpad Sangraha Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year1909
Total Pages308
LanguageGujarati, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati & Worship
File Size12 MB
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