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टळे मोहनी वासना मळ हळ जागे ज्योत; निश्चय धर्म दशावरे, थावे धर्मोधोत. ॥४॥ अनेकान्तना ज्ञानथी, ध्यावो चेतनराज परम महोदय पद वरो, अखण्ड शिव साम्राज्यः ॥ ५ ॥ सर्वोपाधि त्यांगथी, परमानन्द जणाय; अनुभवी ए अनुभवें, परम प्रभुता पाय. ॥६॥ अनुभवीए अनुभव्यु, ए पद स्थिरता पाय; .. बुद्धिसागर आत्मनु, प्रभुपणं परखाय. ॥७॥
योग विषय. नाभिकमलमा सुरसा साधी, गगन गुफामां वास कों; भूलाणी सहु दुनियादारी, चेतन निज घरमांहि ठयों ॥ १॥ चिदानन्दनी हेरि घटमां, अनुभवी नहि जाय कहीं; होडमीज रंगाणी रङ्गे, झळहळ ज्योति जागी रहीं ॥२॥ इन्द्रासनमी पण नहि इच्छा, वन्दन पूजन मान टळ्यु; अलख निरञ्जन स्वामी मळीयो, जलबिन्दु जलधिमां भव्यु।३। नहि कोई रागी नहि कोई द्वेषी, दृष्टा साक्षीभूत रह्यो नाम रूपथी न्यारो परख्यो, वाणीथी नहि जाय कह्यो .॥४॥ अनन्त शक्ति स्वामी भेट्यो, ज्यां जोर्बु त्यां अजवाळू उलट आंखथी आव्यों घटमां, अनन्त लक्ष्मी घर भालु.॥५॥ मन वाणी कायादिक रचना, प्रारब्धे ते बनी रही। साक्षी भूत हुं तेंनी रहियों, अकळ कळा नहि जाय कही॥६॥ उलटयो शाश्वत सुखनो दरियो, परा पार पण नहि पावे; बुद्धिसागर धन्य जगत्मा, शाश्वत शिव मन्दिर जावे. ॥७॥
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