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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥२॥ ॥३॥ ॥ ४ ॥ अनुभव निश्चय धर्मनो, सर्व थकी कर्तव्य.. अनुभव रङ्ग मजीठनो, उतरे नहि तलमात्र, अनुभव पाम्या जे जना, तेनां अन्यज गात्र. अनुभव ताळी लागतां, दर्शन जिननुं थाय; गवि किरणो प्रगटया थकी, नजरे सर्व जणाय. निश्चय श्रद्धा अनुभवे, शुद्ध रमणता थाय; जे पाम्या ते त्यां रम्या, परने नहीं जणाय. गुरुगम ज्ञानाभ्यासथी; प्रगटे अन्तर दृष्टि; अन्तर्दृष्टि प्रगटतां, देखे निजगुण सृष्टि. उदासीनता त्यां टळे, वदन प्रफुल्ल जणाय; बाह्य फरे प्रारब्धथी अन्तर भिन्न सदाय. अन्तरना उपयोगथी, अखण्ड निजगुण भोगः बुद्धिसागर सिद्ध छे, रत्न यिनो योग. ॥७॥ ॥८॥ द्रव्यभाव विहार. पहेतुं जल निर्मल रहे, मलीन थिर जल थाय; गामो गाम विहारथी, निर्मल मुनि सदाय. सर्व सङ्गना त्यागमा, निमित्त हेतु जे विहार; ममत्व टळतुं वेगथी, उत्तम मुनि व्यवहार. निर्जन स्थान विहारथी; ज्ञानी मन वैराग्य; वैराग्ये मन वर्तता, प्रगटे छे सौभाग्य. मुनि गीतार्थ विहार छे, गीतार्थ निश्रित धार; अल्पागमना ज्ञानथी, एकीलों न विहार.. अन्तरना उपयोगथी, अन्तरमाहि विहार; ॥२॥ ॥४॥ For Private And Personal Use Only
SR No.008538
Book TitleBhajanpad Sangraha Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year1909
Total Pages218
LanguageGujarati, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati & Worship
File Size11 MB
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