________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
कहेणी सम रहेणीने राखी, सदाचारथी रहीएरे; अन्तरना उपयोगे जागी, परम प्रभुने लहीएरे. वर्त० ॥ १५२॥ सद्वर्तनथी उच्चकोटीमां, वर्तमान परिणमीएरे; उच्चभावथी उच्चशक्ति छ,मोह वने नहि भमीएरे. वर्त० ॥ १५३ ॥ एक समयरूप वर्तमाननु, वर्णन अत्र न कीg रे; व्यवहारे लौकीक रुढीथी, वर्तमान फल लीधुरे. वर्त० ।। १५४ ॥ अनुमोदन जे धर्म कृत्य, भूतकाळy ग्रहीएरे; भूत पापना पश्चात्तापे, वर्तमान गहगहीएरे. वर्त० ॥ १५५ ॥ सदाचार जे धर्म पन्थना, निशदिन तेने पाळोरे; पापकर्मनी वृत्ति टाळी, धर्मपंथ अजुवालो रे. वर्त० ॥ १५६ ॥ जे जे हेतु धर्मपंथना, व्यवहारे शुभ दाख्यारे तेनुं खंडन कदी न करीए, वीरजिने सहु भाख्यारे. वर्त० ॥१५७॥ उच्चभावना जे हेतुथी, थावे तेने ग्रहीएरे; खंडन मंडनमा नहि पडीए, सुगुरु शरणमा रहीएरे. वर्त० ॥१५॥ सद्गुरु मुनिवर आज्ञा धारी, धर्म कृत्य सहु करीएरे; गुरुविना नहि ज्ञान कदापि, भवपाथोधि तरीएरे. वर्त० ॥१५९॥ स्तरछंदतानी टेवो त्यागी, गुरुशरण चित्त धरीएरे; सद्गुरु मुनि कृपाथी सहेजे, मुक्ति पंथ अनुसरीएरे. वर्तः||१६०॥ संवत् ओगणीश चोसठ साले, श्रावणवद सुखकारीरे; पंचमीने दीन रविवार शुभ, रचना कीधी सारीरे. वर्त०॥१६१।। प्रमथ प्रहरमा रचना पुरी, करतां मंगल मालारे; नगर माणसा चोमासामां,अनुभव सुख विशालारे. वर्त०॥१६२॥ सुखसागरजी सद्गुरु मोटा, धर्म पंथमा धोरीरे; समता संगे निशदिन मुखी, अनुभव हाथे दोरीरे. वर्त० ॥१६॥ गुरु कृपायी मनमा आवी, स्फुरणा अत्र प्रकाशीरे;
For Private And Personal Use Only