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कोशा श्रावीका थइ, बळी शिवपुर वाटे। समकित रत्न आपियुं, वसतिनाज साटे.. ॥४२॥ ब्रह्मचारी स्थूलिभद्रजी, जगमां जय पाया, चोराशी चोविशी सुधी, नाम जगमां रहाया. ॥ ४३ ॥ सद्गुरु संगत योगथी, वेश्या सुख पामी; रत्नत्रयीने साधता, थइ सुख विश्रामी.. ॥४४॥ सुखसागर गुरु प्रेमथी, स्थुलिभद्रने गाया। बुद्धिसागर धन्य धन्य ब्रह्मचारी सवाया. . ॥ ४५ ॥
हृदय स्फुरणा स्वाध्याय.
गझल. भजीले देवनादेवा, करीले सद्गुरु सेवा; कदी नहीं बाह्यमां शांति, खरेखर बाह्यमा भ्रान्ति. ॥ १ ॥ जगत्नी कारमी प्रीति, जगत्नी कारमी रीति; जगत्नी कारमी भीति, जगत्नी कूट छे नीति. ॥२॥ जगत्ना रंग बे रंगी, जगत्ना प्रेम बहु रंगी; । जगत् आ नाटयभूमि छे, जीवननी आश घूमी छे. ॥ ३ ॥ जगत्मां अज्ञना दरिया, जीवो नहि मोहथी तरिया; जगत्मा स्वार्थनी खाइ, जगत्मा स्वार्थ दुःखदायी. ॥ ४ ॥ जगत्मां क्लेशनां कुंडां, विचारो कृत्य छे भूडां जगत्मा संत छ सुखी, जगत्मां मूर्ख छ दुःखी. ॥५॥ जगत्नी रीतियो अवळी, कदी नहि थाय ते सवळी अंतरमा प्रेमनी कुंची, प्रभुमां लीनता उंची. अमारे तत्त्वमा रमवू, अमारे वाह्य नहि भमकुं; बुद्धयन्धि ध्यान धर सारं, तजीने बाह्यमां मारु. ॥७॥
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