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उपशम आदिक भार व्यक्तिवाः तेनी आदि वस्तुस्वभावे धर्म मर्मने ज्ञानी जाणे, अन्तरमा उपयोग धरीने सुखडां माणे. आत्म शक्ति प्रगट करवा दृष्टि अंतर खोलो, बुद्धिसागर आजितचेतनशक्तिनी जय बोलशो.. ... ॥७१ ॥ पोते छे भगवान् हृदयमां नकी धारो, व्यक्तिभावने साध्य करीने चेतन तारो तिरोभावनो व्यक्ति भाव साची जिन मुक्ति, समजी सत्यस्वरूप हृदयमा धरशो युक्ति.. उपादान ते धर्म छे ने निमित्त ते व्यवहार छे, बुद्धिसागर आत्म शक्तिज उपादान जयकार छे. ॥७२॥ आत्मतीर्थने धार्या वण समता नहि आवे, आत्मतीर्थने जाण्याथी सहु लेखे आये; सर्व तीर्थमा चेतन तीर्थ कयुं छे मोडं, आत्म तीर्थनी आगळ अन्य विभाविक खोडं. ज्ञान दर्शन सूर्य चंद्र बे आरति नित्य उतारता, बुद्धिसागर चेतन ईशनी सत्य छे परमार्थता. तारंगा श्री अजित जिनेश्वर दर्शन कीg, . चउ निक्षेपे जिन दर्शन स्पर्शन सुख लीg; निश्चयचेतन शक्ति साधे अजित जिनेश्वर, व्यक्तिथी छे भिन्न गुणोथी सदृश सुखकर.
ओगणीश चोसठ साल चैत्रनी अमावास्याए कर्यो, बुद्धिसागर चेतनशक्ति ग्रंथ मंगलपद भर्यो. ॥७४॥
इति चेतनशक्ति ग्रन्थः समाप्तः
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