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ज्ञानदशा जीवन. ज्ञानदशामां जीवन जातु, लेखे ते जगमा आवे; ज्ञानदशामां रमणा कर्याथी, ध्यान दशा स्हेजे थावे. ॥१॥ ज्ञानदशामां अनंत आनंद, सहजपणे घट प्रगटे छे; अहंवृत्तिनुं जोरज टळतुं, मिथ्यातम झट विघटे छे. ॥२॥ ज्ञान दशामा सामायक छे, ज्ञान दशामां पूज्यपणुं श्वासोश्वासे सर्व कर्म क्षय, ज्ञान दशाथी धर्म पj. ॥३॥ ज्ञान दशाथी अनन्त शक्ति, चेतननी झट खीले छे; ज्ञान दशाथी समतासरमां, जीव हंसलो झीले छे. ॥४॥ ज्ञानदशाथी अन्तर स्थिरता, ज्ञानदशानी बलिहारी; शत ज्ञानिनो अभिमाय एक, ज्ञानदश जग जयकारी. ॥५॥ आत्म ज्ञानथी परम प्रभुता, परखे छे चेतन घटमां; चेतनमांहि अनन्तऋद्धि, भूले नहि ते खटपटमां. ॥६॥ ज्ञान दशाथी निःसंगी थइ; अन्तरदृष्टि वाळेछे; बुद्धिसागर ज्ञानदिवाकर, पामी सुखमां म्हाले छे. ॥७॥
आत्मध्यान. नित्य निरंजन निराकार हुं, अजरामर निर्मल योगी; असंख्य प्रदेशी चेतन हुँ छ, अनन्त मुख गुणनो भोगी. ॥१॥ अनंत गुण पर्याय स्वरुपी, निजपर ज्ञेय तणो ज्ञाता; अनन्त केवल ज्ञान स्वरुपी, ध्येय ध्याननो हुं ध्याता. ॥२॥ तनु मन वचनातीत हुं छ. सिद्ध बुद्ध भगवान् सदा; अखंड निर्भय अविनाशी हुं, हरिहर ब्रह्मा इश खुदा. ॥३॥
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