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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir साधु थं क्रोधे धगधगतो, क्षमा विनानी भूल ठरी. औषध खाधुं रोग वध्यो त्यां विना वैयथी भूल पडी; नित्य शान्ति यदि यह नहीं, दीक्षावस्था केम बडी. पुनः विचारो पुनः विचारो, स्थिरोपयोगे ध्यान धरो; श्रद्धा भक्ति धैर्य प्रयोगे, भवसागरने शिघ्रतरो. असद् विचारांना गोंटाळा, टाळी शुद्ध विचार करो; मनोद्रव्य उज्ज्वलता थाशे, अनुक्रमे आनन्द वरो. शुद्धानन्द विनानो उद्यम, शा माटे नाहक करवो; भव तृष्णानो पार न आवे; लोभ दोषने परिहर वो. द्रव्य क्षेत्र ने काल भावथी, उत्तम अवलंबन सेवो; वैराग्ये मन वाळी भव्यो, पामो शाश्वत सुख मेवो. उपशम क्षयोपशम अभ्यासे, क्षायिक गुण घट मगटाशे बुद्धिसागर ज्ञानदिवाकर, झगमगती ज्योति भासे. For Private And Personal Use Only ॥ २ ॥ ॥ ३ ॥ || 8 || 119 11 ॥ ६ ॥ || 09 || ॥ ८ ॥ उपाधि. उपाधिमा चित्त न ठरतुं, जंझाळे मनई भटके; आ अवकुं मनहुं दोडे, मर्कटवत् मनडुं सटके. अनेकजन संसर्गे मन, अंतरमांहि केम वळे: बाह्यभावमां मन चंचळता, स्थिरतामांहि नहि भळे. ॥ २ ॥ वाकयोगो त्याग कर्याथी, पामो सुसाधक योगो; उपाधिथी दूर रह्याथी, पामो शाश्वत सुख भोगो. उपाधियां उच्च दशा शी, समता योगो अळपाशेः उपाधि छे महा डाकिनी, उपाधिथी सुख जाशे. बायोपाधिमा नहि शान्ति, उपाधियी अलग रहो ॥ १ ॥ ॥ ३ ॥ ॥ ४ ॥
SR No.008538
Book TitleBhajanpad Sangraha Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year1909
Total Pages218
LanguageGujarati, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati & Worship
File Size11 MB
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