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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अल्पज्ञान हानि. अल्प ज्ञान त्यां हाण अति छे. अल्पज्ञान भाषण खोडं; अल्पज्ञानथी तत्त्व न मळशे, अर्धदग्ध धार्यु छोटुं. ॥१॥ अल्पज्ञानथी अवळी वाटे, मनुष्यनुं मनई जाशे; जे हरायुं ढोर भमे छे, तेवू मनडुं भटकाशे. ॥२॥ अल्पज्ञानथी मन चंचळता, सत्य असत्य न परखाशे; भमे भमाव्यो अल्पज्ञानथी, समजु मनमां समजाशे. ॥३॥ आत्मतत्वना सूक्ष्म ज्ञाननो, मर्म न जाणे अज्ञानी; अल्पज्ञानथी वादवादा, वळगे माया मस्तानी. जेवी अवस्था त्रिशंकुनी, अल्पज्ञानथी छे तेवी; बक बकाटो अल्पज्ञानथी, समजी ज्ञानदशा लेवी. ॥५॥ अनेकनयनी सापेक्षाने, समज्याथी सहु समजाशे; मिथ्या ममता त्यारे जाशे, परमब्रह्म पद परखाशे. ॥ ६ ॥ त्रिदोषियूँ जेवू मनडु, अल्पज्ञानिनुं छे तेवू; समजी ज्ञानदशा आदरवी, लघुताथी ज्ञानज लेवू. ॥७॥ गुरुकृपा मेळवी विनये, गुरुकृपाथी ज्ञान मळे सद्गुरुपद पंकजना सेवक, मुक्तिपुरीमा जइ भळे. ॥८॥ अल्प ज्ञानथी निश्चय नहि छे, भव्यो समजशो मनमा बुद्धिसागर ज्ञानदिवाकर, आनन्दघन छे अन्तरमा. ॥९॥ योग्यता. भण्या गण्या पण ज्ञान न ठरतुं, भूल पडी त्या भणतरमां; महेल. चणान्यो पण जो हाले, भूल पडी त्यां चणतरमा. ॥ १ ॥ सिंहणर्नु पय ठाम न उरतुं, कनकपात्र वण भूल खरी; For Private And Personal Use Only
SR No.008538
Book TitleBhajanpad Sangraha Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year1909
Total Pages218
LanguageGujarati, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati & Worship
File Size11 MB
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