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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir समालोचना. संसाराग्निमें कथित पुरुषोंको सुख कैसे मिले, इस उपायमें बहुत मनुष्य तो यह समजते हैं कि, द्रव्योपार्जन करना, बहुत कुटुम्ब भेगा करना, राज्यमें अधिकार प्राप्त करना, लक्षों मनुष्योंसे पुजवाना इत्यादि परम सुखका साधन है. इसी वास्ते धर्म कर्म नित्य नैमित्तिक अनुष्ठान कुल मर्यादा आदिभी शिथिल करके पूर्वोक्त उपायमें लगते है. परंतु ये सब उपाय तो दुःखके है. उनसें परम सुख प्राप्ति कबी नहि होती. जो धनमें सुख मिलता, तो चक्रवर्ती राज्यको ठोकरमें ठुकराकर एकान्त सेवन क्यों करते. न सुखं देवराजस्य, न सुखं चक्रवर्तिनः।। यत् सुखं वीतरागस्य, मुने रेकान्तवासिनः ॥ जो सुख एकान्तवासी मुनिको है, वो इन्द्र तथा चक्रवर्तीको नहि है. तथा जितना मनुष्य जादे संबंधी होगा, उतनाही दुःख जादे नीकलेगा. किसीको ज्वर आता है, किसीका मस्तक दुःखता है, कोई मुमूर्षु है, सबके दुःखसे दुखी होना पडता है. राज्याधिकारकी तो औरभी दुर्दशा है. उसकी इच्छा करनी तो सबसे खराब है. आज कल राज्याधिकार ये है कि, अमुक महाशयको ५००) जुलमाना करनेका अधिकार मिला. अमुक महाशयको छ मास कैद करनेका अधिकार मिला. परंतु सभ्यगण! एसाभी अधिकार आपने सुना है ? कि अमुक शेठजीको फांसी माफ करनेका अधिकार मिला, अथवा अमुक शेठजीको कैद माफ करनेका अधिकार मिला. मित्रगण ! जिससे जीवदया पलेवोही तो अधिकार कहा जाता हे ! और जो क्रूर परिणाम करनेवाले अधिकार हैं वोतो राजाके बिना किसीको शोभित नहीं होते. For Private And Personal Use Only
SR No.008536
Book TitleBhajanpad Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year1916
Total Pages202
LanguageGujarati, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati & Worship
File Size9 MB
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