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(२८.) पीछे इंद्र तिसको वांछके अपालाके मुखमें रहे दाढोंसे पीसे हूए सोमको पीता हुआ. तद पीछे इंद्रके सोम पीया हुआ, त्वम् दोषके रोगसें मुझको मैरे पतिने त्याग दीनी है, अब में ईद्रको सम्यक् प्रकारे प्राप्त हुई हु; ऐसें अपालाके कहे हुए इंद्र अपालाको कहता हुआ कि, तूं क्या वांछची ( चाहती ) है ? मैं सो हि करूं, इन्द्रके ऐसें कहे थके अपाला कर मांगती है कि, मेरा पिताका शिर रोम रहित ( टहरीवाला) है। १ । मेरे पिताका
खेत उखर ( फलादि रहित ) है । २। और मेस गुह्यस्थानमा रोम रहित । ३ । येह पूर्वोक्त तीनों रोम फलादियुक्त कर दे. ऐसे आलाके कहे हुए तिसके पिताके शिरकी टट्टरी दूर करके,
और खेतको फलादियुक्त करके, अपालाके त्वम् दोषके दूर करनेके वास्ते अपने रथके छिद्रमें गाडेके और युगके छिद्रमें अपालाको तीनवार तारकी तरें बचता हुआ, तिस अपालाकि जो पहिलीवार चमडी उतरी तिससे शभ्यक ( मथना), दूसरी चमडीसें गोधा ( गोह ) हुई, और विसरी वेश उतरी चमडीसें किरले ( कांकडे ) होते भए. तिस. पीछे इंद्र तिस अपालाको सूर्य समान चमकती हुई चमडीवाली करता हुआ. यह ऐतिहासिक कथा है. और यह, कथा, शाज्यायन ब्राह्मणमै स्साएपणे कही है. और यहीं लिखा हुआ अर्थ, कन्या वार सात ऋचायों मे कथन करी है; वेऋये येह हैं.
॥ प्रथमा॥
कन्या वारंवायती सोममपि सतादित् । अस्तं भरन्त्यन्नवीदिन्द्रीय सुमवैत्वा शक्राय सुनवैल्वा ॥१॥
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