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(438) पद ( भजन )
ओधवजी संदेशो कहेजो श्यामने. ए राग.
अपूर्व अवसर समकित श्रद्धाथी लही, वैरी वामीशकर्म मर्म जंजाळजो. सादि अति स्थिति भांगो ए को, टळे अनादि शांतपणे निरधारजो. दुःख सुख समभावे वेदु हुं आत्ममां, शत्रु मित्र पुत्रादिकपर समचित्त जो. चउ गति छेदक चोधुं गुण गणुं लही, दर्शन मोहनी टळतां थाउ पवित्रजो. अनंत भव कारक क्रोधादिक चउ हणी, अ. तम भावे थाउ हुं सम स्थिरजो अंतरदृष्टिथी आतमने देखतां, दळे अनादिपर परिणति भव पीडजो. अत्मासंख्य प्रदेशे दृष्टि जोडतां, संयम हेतु पामी थाउ पकीरजो. बार कषायने टाळी गुणश्रेणि चढे. धर्म ध्यान वेगेथी संयंत वीर जो. रोग शोक वियोगादिक दूरे टळ्या, निरार्ग निःस्नेहि अप्रतिबद्धजो. निर्लेपि आकाशनी पेरे तत्त्वथी, क्षपक श्रेणि शुकल परिणामे लद्धजो. भिन्न भिन्न स्वरुप आतमनुं ओळख्णुं,
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